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Why is the discussion of diseases only when they spread to developed countries? | बिमारिओं की चर्चा विकसित देशों में फैलने पर ही क्यों

पिछले करीब छह सप्ताह में ही आप मंकीपॉक्स बीमारी का नाम सुने होंगे। लेकिन आपको यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि यह कोई नई बीमारी नहीं है। पिछले पचास सालों से पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के 11 देशों में इस बीमारी से लोग नियमित प्रभावित होते रहे हैं। कांगो में साल 2022 में मई के मध्य तक करीब 1,200 मामले मिले और 60 लोगों की मृत्यु भी हुई। नाइजीरिया में वर्ष 2017 से ही मंकीपॉक्स का ऑउटब्रेक चल रहा है और अधिकृत रूप से 550 मरीज आए हैं। लेकिन यह बड़ी खबर नहीं थी। बीते मई के पहले सप्ताह में जब इस बीमारी के मरीज यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों के करीब 30 देशों में मिले, तब दुनिया का ध्यान उसकी ओर गया।

दरअसल, वैश्विक समुदाय का ध्यान उन पर कम ही जाता है जो दुनिया के निम्न और मध्यम आय के देशों में कई ऐसी बीमारियां हैं, जो एक बड़ी आबादी को प्रभावित करती हैं। इस चुनौती को पहले भी ‘10/90 गैप’ के नाम से पहचाना गया है। ‘10/90 गैप’ के अनुसार जो स्वास्थ्य समस्याएं अमीर देशों या दुनिया की करीब 10% आबादी को प्रभावित करती हैं, उन पर 90% ध्यान और स्वास्थ्य खर्च दिया जाता है। और जो स्वास्थ्य चुनौतियां 90% आबादी (मुख्यतया निम्न और निम्न मध्यम आय के देश) को प्रभावित करती हैं, उन पर मात्र 10% ध्यान और स्वास्थ्य आबंटन होता है। इसका अन्य उदाहरण हैं करीब 17 बीमारियों का समूह, जिनमें कुष्ठ, हाथीपांव और रेबीज शामिल हैं। इन्हें आधिकारिक तौर पर ‘नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज’ (उपेक्षित ऊष्णकटिबंधीय रोग) कहा जाता है। ये बीमारियां निम्न-मध्यम आय के देशों में लम्बे समय से बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं हैं, लेकिन उनको वर्षों से नजरअंदाज किया जा रहा है।

अगर मंकीपॉक्स अब सुर्खियों में है तो इसका कारण तेजी से कई देशों में फैलना जरूर है लेकिन उससे भी बड़ी बात है इसका उच्च आय वाले देशों में फैलना। अन्यथा अकेले कांगो में 2022 में कुल मिले मरीज बाकी 30 देशों में मिले मरीजों से अधिक हैं। अफ्रीका में मंकीपॉक्स से मृत्यु भी होती हैं, जबकि यूरोप और अमेरिका से कोई मृत्यु नहीं रिपोर्ट की गई है।

चेचक के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा टेकोविरिमट को मंकीपॉक्स के इलाज के लिए इसी साल अमेरिका में मंजूरी मिली है। मंकीपॉक्स के लिए एक टीके को 2019 में मंजूरी मिली थी, साथ ही चेचक के टीकों को इस बीमारी से भी बचाव में प्रभावकारी माना जाता है। लेकिन वर्ष 1980 से दुनिया से उन्मूलन के बाद चेचक का टीका लगना बंद हो गया था। फिलहाल चेचक के कुछ टीके अमेरिका तथा यूरोप के कुछ देशों में भंडारित रखे हैं, लेकिन इनकी उपलब्धता अफ्रीका के उन देशों में- जहां बीमारी एंडेमिक है- नहीं है। ये टीके भारत के पास भी नहीं हैं।

कोविड महामारी इसका उदाहरण है कि बीमारियों का एक देश से दूसरे देशों में फैलना पूरी तरह से संभव है। भारत में अभी तक मंकीपॉक्स का वायरस या उसके मरीज नहीं मिले हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में देश में कई नए वायरस आए हैं, जैसे निपाह, ज़ीका और वेस्ट-नाइल। ऐसे में अगर आने वाले समय में मंकीपॉक्स के मामले भी आने लगें तो आश्चर्य नहीं होगा। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। मंकीपॉक्स के वैश्विक महामारी बनने की सम्भावना नगण्य है। हां, अब सभी देशों को संक्रामक बीमारियों के लिए स्वास्थ्य निगरानी तंत्र को मजबूत जरूर कर लेना चाहिए। जांनवरों से इंसानों में फैलने वाली (जूनोटिक) बीमारियों पर खास ध्यान देना होगा।

मंकीपॉक्स के अफ्रीका के 11 देशों में पचास सालों से एक चुनौती होने के बावजूद इसकी कारगर दवा या टीके की खोज को पर्याप्त प्राथमिकता नहीं दी गई है। जो दवाएं और टीके हैं भी, वो वहां उपलब्ध नहीं हैं, जहां जरूरत है। इससे पता चलता है कि गरीब देशों की स्वास्थ्य समस्याओं पर उच्च आय वाले देश पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं। यही रवैया अफ्रीका में एबोला जैसी गंभीर बीमारी के लिए भी रहा है। हैती में 2010-19 में हैजे से करीब दस हजार लोगों की मृत्यु हुई थी। कोरोना के बाद, मंकीपॉक्स ऑउटब्रेक हमें याद दिलाता है कि हम दुनिया के चाहे किसी भी हिस्से में हों, हमारा स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इसलिए स्वास्थ्य समस्या चाहे किसी भी देश की हो, सारे विश्व-समुदाय को आपसी सहयोग से लड़ना चाहिए। लेकिन देखना यह है कि ऐसा कब होगा?

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